रविवार, 22 दिसंबर 2013
शुक्रवार, 30 अगस्त 2013
सुवर्ण प्राशन
बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमताओं को बढाकर उनके सर्वांगीण विकास में सहायक भारतीय चिकित्सा परम्परा की अनूठी देन हैं ।
“सुवर्ण प्राशन संस्कार”
हम सभी वर्तमान काल में अपने बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास अच्छे प्रकार से हो एवं वे किसी भी रोग से आक्रान्त न हो इसप्रकार की चिंता में सदैव रहते है , इस हेतु हम बच्चों को जन्म से ही विभिन्न सुरक्षात्मक उपाय करते है । (जैसे रोगानुसार टीकाकरण )
आयुर्वेदाचार्योँ ने भी बच्चों के शारीरिक व मानसिक स्वस्थ्य के दृष्टी से चिंतन कर सुवर्ण प्राशन की योजना की है । जिसमें सुवर्ण के गुणों से युक्त ऐसे कल्प का उपयोग किया जाता है,जो हमारे बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमताओं की वृध्दीकर सभी प्रकार के रोगों से रक्षा करने में सहायक है,साथ ही अनेक शारीरिक व मानसिक गुणों की वृध्दिकर बच्चों को सर्वगुण संपन्न करने में सहायक है
सुवर्ण प्राशन का लाभ
“सुवर्ण प्राशनं ह्येततन्मेधाग्निबलवर्धनम ।
आयुष्यं मंगलम पुण्यं वृष्यं वर्ण्यम गृहापहम ॥
मासात परममेधावी व्यधिभिर्न च धृष्यते ।
षड्भिर्मासैः श्रुतधरः सुवर्ण प्राशनादभवेत ॥
(काश्यप संहिता , सूत्र स्थान लेहनाध्याय )
१. मेधावृध्दिकर - बुध्दि बढ़ाने वाला
२. अग्निवृध्दिकर - भूख बढ़ाने वाला (चयापचय क्रिया बढ़ाने वाला )
३. बल्वृध्दिकर - बल बढ़ाने वाला
४. आयुवृध्दिकर - दीर्घ आयुष्य प्रदान करने वाला
५. कल्याणकारी - कल्याण करने वाला ( सर्वांगीण विकास में सहायक )
६. पुण्यकारक - रोग प्रतिरोधक क्षमताओं को बढ़ाने वाला
७. वृष्यकर - शारीर की सभी धातुओं की वृध्दि करने वाला
८. वर्ण्यकर - शारीर के वर्ण्य (रंग) को उत्तम करने वाला
९. गृहबाधा नाशक - बाहरी संक्रामक रोगों से रक्षा करने वाला
१०. श्रुतधर - एक बार सुनकर याद रखने वाला
[ एक मास में मेधावी व छः मास में श्रुतधर होता है एवं व्याधियों से आक्रान्त नहीं होता ]
सुवर्ण प्रशान में उपयुक्त द्रव्य
“ततः च ऐन्द्री ब्राह्मी शंखपुष्पी वचाकल्कं मधुघृतोपेतं हरेणु मात्रं कुशाग्रभिमंत्रितं सोवर्णेनाश्वत्थपत्रेण मेधायुर्बलजननं प्रशायेत ॥
तद वद ब्राह्मी बलानन्ताशतावर्यन्यतं चूर्णं वा ॥
(अष्टांग संग्रह, उत्तरतंत्र अ. १ )
सुवर्ण भस्म , मधु एवं घृत ब्राह्मी शंखपुष्पी वचा पीपल शतावरी बला इत्यादी द्रव्यों का उपयोग किया जाता है।
सुवर्ण प्राशन पुष्य नक्षत्र पर ही क्यों -
सुवर्ण प्राशन पुष्य नक्षत्र में देने का विधान है। पुष्य का अर्थ ही पोषण करने वाला , ऊर्जा और शक्ति प्रदान करने वाला है , पुष्य नक्षत्र संरक्षणता संवर्धन और समृध्दि का प्रतीक है। विद्धानों ने इसे बहुत ही शुभ और मंगलकारी माना है।
पुष्य नक्षत्र में सुवर्ण प्राशन करवाने से यथोचित फल की प्राप्ति होती है।
सुवर्ण प्राशन योग्य आयु
जन्म से सोलह वर्ष की आयु वर्ग
वैध्य. शैलेश एन. मानकर
बी ए एम एस (नागपुर)
डॉ व्ही जी देशमुख स्मृति ओजस आयुर्वेद
०५ वसुंधरा सुरेन्द्र प्लेस , होशंगाबाद रोड
भोपाल (मध्यप्रदेश )- ४६२०२६
दूरभाष - ९४२५३८२०३२
सोमवार, 5 अगस्त 2013
॥ गर्भिणी मासानुमासिक क्षीर पाक ॥
- प्रथम मास - जेष्ठमध , सागबीज ,क्षीर काकोली , देवदार,सिध्द दूध
- व्दितीय मास - आपटा , तीळ , मंजिष्ठा ,पिंपली , शतावरी
- तृतीय मास - बांड गुळ , क्षीर काकोली ,गव्हला , सारिवा
- चतुर्थ मास - अनंता , रास्ना , भारंग मूळ , उपसळसरी , शतावरी
- पंचम मास - रिंगणी , डोरली, शिवणमूळ , क्षीरीवृक्षकोंब , क्षीरीवृक्ष त्वक घृत
- षष्ठ मास - पिंठवळ , बला , शिग्रु , गोक्षुर ,जेष्ठमध
- सप्तम मास - शिंगाडा, कमल तंतू , द्राक्षा , मुस्ता , जेष्ठमध , शर्करा
- अष्टम मास - कपित्थ ,डोरली , पिठवण , असमूल , बिल्वमूल सिध्द दूध
- नवम मास - शतावरी , अनन्ता , क्षीरी विदारी , जेष्ठमध
गुरुवार, 1 अगस्त 2013
ॐ धन्वंतरये नमः॥
ॐ धन्वंतरये नमः॥
इसके अलावा उनका एक और मंत्र भी है
ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:,
अमृतकलश हस्ताय सर्वभय विनाशाय सर्वरोगनिवारणाय,
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धन्वंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥
अर्थात
परम भगवन को, जिन्हें सुदर्शन वासुदेव धन्वंतरी कहते हैं, जो अमृत कलश लिये हैं, सर्वभय नाशक हैं, सररोग नाश करते हैं, तीनों लोकों के स्वामी हैं और उनका निर्वाह करने वाले हैं; उन विष्णु स्वरूप धन्वंतरी को नमन है।
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